सनातन धर्म में गंगा दशहरा का अत्यंत पावन महत्व है। यह पर्व उस दिन की स्मृति में मनाया जाता है जब देवी गंगा, भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। इस शुभ दिन को गंगा दशहरा 2025 के रूप में विशेष रूप से मनाया जाएगा।
इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करते हैं। शास्त्रों में लिखा है कि इस दिन गंगाजल से महादेव का अभिषेक करने से साधक को मनवांछित फल प्राप्त होते हैं और जीवन के सभी दुख-संकट दूर हो जाते हैं।
गंगा दशहरा की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, राजा सगर के यज्ञ के घोड़े को इंद्रदेव ने चुरा लिया और उसे पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के हजारों पुत्र जब उसे खोजते हुए वहां पहुंचे तो उनके कोलाहल से कपिल मुनि की तपस्या भंग हो गई। मुनि के क्रोध से वे सभी भस्म हो गए।
बाद में राजा अंशुमान, फिर उनके पुत्र राजा दिलीप और अंत में राजा भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर आने को तैयार हुईं लेकिन उनके प्रचंड वेग को रोकने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया। फिर अपनी एक जटा खोलकर उन्होंने गंगा को सात धाराओं में प्रवाहित किया।
गंगा स्नान और शिव अभिषेक का महत्व
गंगा दशहरा के दिन:
गंगाजल से स्नान करने पर सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से विशेष पुण्य फल मिलता है।
जो लोग गंगा किनारे नहीं जा सकते, वे घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
इस दिन ॐ नमः शिवाय और गंगे त्रिपथगे गंगे मंत्र का जप विशेष लाभकारी माना गया है