भारतीय संस्कृति में सिंदूर का स्थान केवल श्रृंगार की वस्तु तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर हिंदू विवाहित स्त्री के जीवन का अभिन्न अंग है। सिंदूर का महत्व आध्यात्मिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत गहरा है। यह केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि अखंड सौभाग्य, समर्पण, शक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
सिंदूर का धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो सिंदूर को “सुहाग का प्रतीक” माना जाता है। हिन्दू धर्म में जब कोई स्त्री विवाह करती है तो पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन की कामना के लिए वह अपनी मांग में सिंदूर भरती है। यह परंपरा केवल श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि सनातन काल से चली आ रही एक दिव्य परंपरा है।
शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों तप किया था। जब उनका विवाह भगवान शिव से हुआ, तब उन्होंने अपनी मांग में सिंदूर लगाया और कहा कि जो स्त्री सिंदूर लगाएगी, उसके पति को सौभाग्य और लंबी आयु प्राप्त होगी।
नीचे दिए गए विडियो को एक बार ज़रूर देखें :
वैदिक काल में सिंदूर की परंपरा
ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी सिंदूर का उल्लेख मिलता है। उस समय सिंदूर को कुंकुम कहा जाता था और यह पंच-सौभाग्य का एक अंग माना जाता था। पंच-सौभाग्य में शामिल थे:
सिर पर पुष्प
मंगलसूत्र
पैर की उंगलियों में बिछुए
चेहरे पर हल्दी
और मांग में सिंदूर
यह सब विवाह के पवित्र बंधन को और अधिक गहन बनाने के लिए प्रयोग होता था।
रामायण काल और सिंदूर
रामायण काल की एक बहुत प्रसिद्ध कथा में बताया गया है कि एक बार हनुमान जी ने माता सीता को सिंदूर लगाते देखा। उन्होंने जिज्ञासावश पूछा, “माता, आप सिंदूर क्यों लगाती हैं?” सीता जी ने उत्तर दिया, “अपने स्वामी राम की लंबी उम्र और सुख की कामना के लिए।”
यह सुनकर राम भक्त हनुमान जी ने संपूर्ण शरीर पर सिंदूर लगा लिया और यही कारण है कि आज भी हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि त्रेता युग में भी सिंदूर की महत्ता थी।
द्वापर युग में सिंदूर
द्रौपदी के सिंदूर लगाने का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। यह दर्शाता है कि द्वापर युग में भी सिंदूर को विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था। यह परंपरा केवल मिथकीय नहीं, बल्कि गहराई से रचित धार्मिक भावना से जुड़ी हुई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता और सिंदूर
प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता में खुदाई के दौरान कुछ ऐसी मूर्तियां मिली हैं जिनमें महिलाओं की मांग में लाल रेखा (सिंदूर) भरी हुई दिखाई देती है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह सिंदूर लगाने की परंपरा का ऐतिहासिक प्रमाण है। यह तथ्य यह सिद्ध करता है कि सिंदूर लगाने की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है।
सिंदूर का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
सिंदूर में पारंपरिक रूप से हल्दी, चूना और पारे का उपयोग होता है। यह मिश्रण एक प्रकार से ऊर्जा को सक्रिय करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह “पिट्यूटरी ग्रंथि” को उत्तेजित करता है, जिससे स्त्रियों में मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन बना रहता है।
आज के समय में सिंदूर का स्थान
भले ही आधुनिक युग में फैशन और सोच में बदलाव आया हो, लेकिन सिंदूर का महत्व आज भी उतना ही पवित्र और पूज्यनीय है। आज की शिक्षित स्त्री भी सिंदूर को केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम, सम्मान और समर्पण का प्रतीक मानती है।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। AC News इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।